याकूब का लाबान केपास भेजा जाना
उत्पत्ति 28
1 तब इसहाक नेयाकूब को बुलाकरआशीर्वाद दिया, औरआज्ञा दी, “तूकिसी कनानी लड़कीको न ब्याहलेना।
2 पद्दनराम में अपनेनाना बतूएल केघर जाकर वहाँअपने मामा लाबानकी एक बेटीको ब्याह लेना।
3 सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुझेआशीष दे, औरफलवन्त करके बढ़ाए, और तू राज्य–राज्य की मण्डलीका मूल हो।
4 वह तुझे औरतेरे वंश कोभी अब्राहम कीसी आशीष दे, कि तू यहदेश जिसमें तूपरदेशी होकर रहताहै, और जिसेपरमेश्वर ने अब्राहमको दिया था, उसका अधिकारी होजाए।”
5 तब इसहाक नेयाकूब को विदाकिया, और वहपद्दनराम को अरामीबतूएल के पुत्रलाबान के पासचला, जो याकूबऔर एसाव कीमाता रिबका काभाई था।
एसाव का इश्माएल कीबेटी महलत सेब्याह
6 जब एसाव कोपता चला किइसहाक ने याकूबको आशीर्वाद देकरपद्दनराम भेज दिया, कि वह वहींसे पत्नी लाए, और उसको आशीर्वाददेने के समययह आज्ञा भीदी, “तू किसीकनानी लड़की कोब्याह न लेना,”
7 और याकूब माता–पिता की मानकरपद्दनराम को चलदिया।
8 तब एसाव यहसब देखकर औरयह भी सोचकरकि कनानी लड़कियाँमेरे पिता इसहाकको बुरी लगतीहैं,
9 अब्राहम के पुत्रइश्माएल के पासगया, और इश्माएलकी बेटी महलतको, जो नबायोतकी बहन थी, ब्याह कर अपनीपत्नियों में मिलालिया।
बेतेल में याकूब कास्वप्न
10 याकूब बेर्शेबा सेनिकलकर हारान कीओर चला।
11 और उसने किसीस्थान में पहुँचकररात वहीं बितानेका विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्तहो गया था; इसलिए उसने उसस्थान के पत्थरोंमें से एकपत्थर ले अपनातकिया बनाकर रखा, और उसी स्थानमें सो गया।
12 तब उसने स्वप्नमें क्या देखा, कि एक सीढ़ीपृथ्वी पर खड़ीहै, और उसकासिरा स्वर्ग तकपहुँचा है; औरपरमेश्वर के दूतउस पर सेचढ़ते–उतरते हैं।
13 और यहोवा उसकेऊपर खड़ा होकरकहता है, “मैंयहोवा, तेरे दादाअब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक काभी परमेश्वर हूँ; जिस भूमि परतू लेटा है, उसे मैं तुझकोऔर तेरे वंशको दूँगा।
14 और तेरा वंशभूमि की धूलके किनकों केसमान बहुत होगा, और पश्चिम, पूरब, उत्तर, दक्षिण, चारोंओर फैलता जाएगा: और तेरे औरतेरे वंश केद्वारा पृथ्वी केसारे कुल आशीषपाएँगे।
15 और सुन, मैंतेरे संग रहूँगा, और जहाँ कहींतू जाए वहाँतेरी रक्षा करूँगा, और तुझे इसदेश में लौटाले आऊँगा: मैंअपने कहे हुएको जब तकपूरा न करलूँ तब तकतुझको न छोड़ूँगा।” (यशा. 41:10)
16 तब याकूब जागउठा, और कहनेलगा, “निश्चय इसस्थान में यहोवाहै; और मैंइस बात कोन जानता था।”
17 और भय खाकरउसने कहा, “यहस्थान क्या हीभयानक है! यहतो परमेश्वर केभवन को छोड़और कुछ नहींहो सकता; वरन्यह स्वर्ग काफाटक ही होगा।”
18 भोर को याकूबउठा, और अपनेतकिये का पत्थरलेकर उसका खम्भाa खड़ा किया, और उसके सिरेपर तेल डालदिया।
19 और उसने उसस्थान का नाम बेतेलb रखा; परउस नगर कानाम पहले लूजथा।
20 याकूब ने यहमन्नत मानी, “यदि परमेश्वर मेरे संग रहकरc इस यात्रामें मेरी रक्षाकरे, और मुझेखाने के लियेरोटी, और पहननेके लिये कपड़ादे,
21 और मैं अपनेपिता के घरमें कुशल क्षेमसे लौट आऊँ; तो यहोवा मेरापरमेश्वर ठहरेगा।
22 और यह पत्थर, जिसका मैंने खम्भाखड़ा किया है, परमेश्वर का भवनठहरेगा: और जोकुछ तू मुझेदे उसका दशमांशमैं अवश्य हीतुझे दिया करूँगा।”
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