परमेश्वर और उसके लोग
आसाप का मश्कील
भजन संहिता 78
1 हे मेरे लोगों, मेरी शिक्षा सुनो; मेरे वचनों की ओर कान लगाओ!
2 मैं अपना मुँह नीतिवचन कहने के लिये खोलूँगा; मैं प्राचीकाल की गुप्त बातें कहूँगा, (मत्ती. 13:35)
3 जिन बातों को हम ने सुना, और जान लिया, और हमारे बाप दादों ने हम से वर्णन किया है।
4 उन्हें हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगे, परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगों से, यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ्य और आश्चर्यकर्मों का वर्णन करेंगे। (व्य. 4:9, यहो. 4:6-7, इफि. 6:4)
5 उसने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, और इस्राएल में एक व्यवस्था चलाई, जिसके विषय उसने हमारे पितरों को आज्ञा दी, कि तुम इन्हे अपने-अपने बाल-बच्चों को बताना;
6 कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात् जो बच्चे उत्पन्न होनेवाले हैं, वे इन्हे जानें; और अपने-अपने बाल-बच्चों से इनका बखान करने में उद्यत हों,
7 जिस से वे परमेश्वर का भरोसा रखें, परमेश्वर के बड़े कामों को भूल न जाएँ, परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें;
8 और अपने पितरों के समान न हों, क्योंकि उस पीढ़ी के लोग तो हठीले और झगड़ालू थे, और उन्होंने अपना मन स्थिर न किया था, और न उनकी आत्मा परमेश्वर की ओर सच्ची रही। (2 राजा. 17:14-15)
9 एप्रैमियों ने तो शस्त्रधारी और धनुर्धारी होने पर भी, युद्ध के समय पीठ दिखा दी।
10 उन्होंने परमेश्वर की वाचा पूरी नहीं की, और उसकी व्यवस्था पर चलने से इन्कार किया।
11 उन्होंने उसके बड़े कामों को और जो आश्चर्यकर्मो उसने उनके सामने किए थे, उनको भुला दिया।
12 उसने तो उनके बापदादों के सम्मुख मिस्र देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे।
13 उसने समुद्र को दो भाग करके उन्हें पार कर दिया, और जल को ढ़ेर के समान खड़ा कर दिया।
14 उसने दिन को बादल के खम्भे से और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्वारा उनकी अगुआई की।
15 वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उनको मानो गहरे जलाशयों से मनमाना पिलाता था। (निर्ग. 17:6, गिन. 20:11, 1 कुरि. 10:4)
16 उसने चट्टान से भी धाराएँ निकालीं और नदियों का सा जल बहाया।
17 तौभी वे फिर उसके विरूद्ध अधिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरूद्ध उठते रहे।
18 और अपनी चाह के अनुसार भोजन माँगकर मन ही मन परमेश्वर की परीक्षा की।
19 वे परमेश्वर के विरूद्ध बोले, और कहने लगे, “क्या परमेश्वर जंगल में मेज लगा सकता है?
20 उसने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, और धाराएँ उमंड चली, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपनी प्रजा के लिये मांस भी तैयार कर सकता?”
21 यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, तब याकूब के बीच आग लगी, और इस्राएल के विरूद्ध क्रोध भड़का;
22 इसलिए कि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखा था, न उसकी उद्धार करने की शक्ति पर भरोसा किया।
23 तौभी उसने आकाश को आज्ञा दी, और स्वर्ग के द्वारों को खोला;
24 और उनके लिये खाने को मन्ना बरसाया, और उन्हें स्वर्ग का अन्न दिया। (निर्ग. 16:4, यूह. 6:31)
25 मनुष्यों को स्वर्गदूतों की रोटी मिली; उसने उनको मनमाना भोजन दिया।
26 उसने आकाश में पुरवाई को चलाया, और अपनी शक्ति से दक्खिनी बहाई;
27 और उनके लिये मांस धूलि के समान बहुत बरसाया, और समुद्र के बालू के समान अनगिनत पक्षी भेजे;
28 और उनकी छावनी के बीच में, उनके निवासों के चारों ओर गिराए।
29 और वे खाकर अति तृप्त हुए, और उसने उनकी कामना पूरी की।
30 उनकी कामना बनी ही रही, उनका भोजन उनके मुँह ही में था,
31 कि परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का, और उसने उनके हष्टपुष्टों को घात किया, और इस्राएल के जवानों को गिरा दिया। (1 कुरि. 10:5)
32 इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; और परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों की प्रतीति न की।
33 तब उसने उनके दिनों को व्यर्थ श्रम में, और उनके वर्षों को घबराहट में कटवाया।
34 जब वह उन्हें घात करने लगता, तब वे उसको पूछते थे; और फिरकर परमेश्वर को यत्न से खोजते थे।
35 उनको स्मरण होता था कि परमेश्वर हमारी चट्टान है, और परमप्रधान परमेश्वर हमारा छुड़ानेवाला है।
36 तौभी उन्होंने उसकी चापलूसी की; वे उस से झूठ बोले।
37 क्योंकि उनका ह्रदय उसकी ओर दृढ़ न था; न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे। (प्रेरि. 8:21)
38 परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढाँपता, और नाश नहीं करता; वह बारबार अपने क्रोध को ठण्डा करता है, और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता।
39 उसको स्मरण हुआ कि ये नाशमान हैं, ये वायु के समान हैं जो चली जाती और लौट नहीं आती।
40 उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उससे बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया!
41 वे बार-बार परमेश्वर की परीक्षा करते थे, और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे।
42 उन्होंने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उसने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था;
43 कि उसने कैसे अपने चिन्ह मिस्र में, और अपने चमत्कार सोअन के मैदान में किए थे।
44 उसने तो मिस्रियों की नदियों को लहू बना डाला, और वे अपनी नदियों का जल पी न सके। (प्रका. 16:4)
45 उसने उनके बीच में डाँस भेजे जिन्होंने उन्हें काट खाया, और मेंढक भी भेजे, जिन्होंने उनका बिगाड़ किया।
46 उसने उनकी भूमि की उपज कीड़ों को, और उनकी खेतीबारी टिड्डयों को खिला दी थी।
47 उसने उनकी दाखलताओं को ओेलों से, और उनके गूलर के पेड़ों को बड़े-बड़े पत्थर बरसाकर नाश किया।
48 उसने उनके पशुओं को ओलों से, और उनके ढोरों को बिजलियों से मिटा दिया।
49 उसने उनके ऊपर अपना प्रचणड क्रोध और रोष भड़काया, और उन्हें संकट में डाला, और दुखदाई दूतों का दल भेजा।
50 उसने अपने क्रोध का मार्ग खोला, और उनके प्राणों को मृत्यु से न बचाया, परन्तु उनको मरी के वश में कर दिया।
51 उसने मिस्र के सब पहलौठों को मारा, जो हाम के डेरों में पौरूष के पहले फल थे;
52 परन्तु अपनी प्रजा को भेड़-बकरियों के समान प्रस्थान कराया, और जंगल में उनकी अगुआई पशुओं के झुण्ड की सी की।
53 तब वे उसके चलाने से बेखटके चले और उनको कुछ भय न हुआ, परन्तु उनके शत्रु समुद्र में डूब गए।
54 और उसने उनको अपने पवित्र देश की सीमा तक, इसी पहाड़ी देश में पहुँचाया, जो उसने अपने दाहिने हाथ से प्राप्त किया था।
55 उसने उनके सामने से अन्यजातियों को भगा दिया; और उनकी भूमि को डोरी से माप-मापकर बाँट दिया; और इस्राएल के गोत्रों को उनके डेरों में बसाया।
56 तौभी उन्होंने परमप्रधान परमेश्वर की परीक्षा की और उससे बलवा किया, और उसकी चितौनियों को न माना,
57 और मुड़कर अपने पुरखाओं के समान विश्वासघात किया; उन्होंने निकम्मे धनुष के समान धोखा दिया।
58 क्योंकि उन्होंने ऊँचे स्थान बनाकर उसको रिस दिलाई, और खुदी हुई मुर्तियों के द्वारा उसमें से जलन उपजाई।
59 परमेश्वर सुनकर रोष से भर गया, और उसने इस्राएल को बिल्कुल तज दिया।
60 उसने शीलो के निवास, अर्थात् उस तम्बू को जो उसने मनुष्यों के बीच खडा किया था, त्याग दिया,
61 और अपनी सामर्थ्य को बँधुवाई में जाने दिया, और अपनी शोभा को द्रोही के वश में कर दिया।
62 उसने अपनी प्रजा को तलवार से मरवा दिया, और अपने निज भाग के विरुद्ध रोष से भर गया।
63 उनके जवान आग से भस्म हुए, और उनकी कुमारियों के विवाह के गीत न गाएँ गए।
64 उनके याजक तलवार से मारे गए, और उनकी विधवाएँ रोने न पाई।
65 तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा, और ऐसे वीर के समान उठा जो दाखमधु पीकर ललकारता हो।
66 उसने अपने द्रोहियों को मारकर पीछे हटा दिया; और उनकी सदा की नामधराई कराई।
67 फिर उसने यूसुफ के तम्बू को तज दिया; और एप्रैम के गोत्र को न चुना;
68 परन्तु यहूदा ही के गोत्र को, और अपने प्रिय सिय्योन पर्वत को चुन लिया।
69 उसने अपने पवित्रस्थान को बहुत ऊँचा बना दिया, और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नींव उसने सदा के लिये डाली है।
70 फिर उसने अपने दास दाऊद को चुनकर भेड़शालाओं में से ले लिया;
71 वह उसको बच्चेवाली भेड़ों के पीछे-पीछे फिरने से ले आया कि वह उसकी प्रजा याकूब की अर्थात् उसके निज भाग इस्राएल की चरवाही करे।
72 तब उसने खरे मन से उनकी चरवाही की, और अपने हाथ की कुशलता से उनकी अगुआई की।
भजन संहिता 1
भजन संहिता 2
भजन संहिता 3
भजन संहिता 4
भजन संहिता 5
भजन संहिता 6
भजन संहिता 7
भजन संहिता 8
भजन संहिता 9
भजन संहिता 10
भजन संहिता 11
भजन संहिता 12
भजन संहिता 13
भजन संहिता 14
भजन संहिता 15
भजन संहिता 16
भजन संहिता 17
भजन संहिता 18
भजन संहिता 19
भजन संहिता 20
भजन संहिता 21
भजन संहिता 22
भजन संहिता 23
भजन संहिता 24
भजन संहिता 25
भजन संहिता 26
भजन संहिता 27
भजन संहिता 28
भजन संहिता 29
भजन संहिता 30
भजन संहिता 31
भजन संहिता 32
भजन संहिता 33
भजन संहिता 34
भजन संहिता 35
भजन संहिता 36
भजन संहिता 37
भजन संहिता 38
भजन संहिता 39
भजन संहिता 40
भजन संहिता 41
भजन संहिता 42
भजन संहिता 43
भजन संहिता 44
भजन संहिता 45
भजन संहिता 46
भजन संहिता 47
भजन संहिता 48
भजन संहिता 49
भजन संहिता 50
भजन संहिता 51
भजन संहिता 52
भजन संहिता 53
भजन संहिता 54
भजन संहिता 55
भजन संहिता 56
भजन संहिता 57
भजन संहिता 58
भजन संहिता 59
भजन संहिता 60
भजन संहिता 61
भजन संहिता 62
भजन संहिता 63
भजन संहिता 64
भजन संहिता 65
भजन संहिता 66
भजन संहिता 67
भजन संहिता 68
भजन संहिता 69
भजन संहिता 70
भजन संहिता 71
भजन संहिता 72
भजन संहिता 73
भजन संहिता 74
भजन संहिता 75
भजन संहिता 76
भजन संहिता 77
भजन संहिता 78
भजन संहिता 79
भजन संहिता 80
भजन संहिता 81
भजन संहिता 82
भजन संहिता 83
भजन संहिता 84
भजन संहिता 85
भजन संहिता 86
भजन संहिता 87
भजन संहिता 88
भजन संहिता 89
भजन संहिता 90
भजन संहिता 91
भजन संहिता 92
भजन संहिता 93
भजन संहिता 94
भजन संहिता 95
भजन संहिता 96
भजन संहिता 97
भजन संहिता 98
भजन संहिता 99
भजन संहिता 100
भजन संहिता 111
भजन संहिता 112
भजन संहिता 113
भजन संहिता 114
भजन संहिता 115
भजन संहिता 116
भजन संहिता 117
भजन संहिता 118
भजन संहिता 119
भजन संहिता 120
भजन संहिता 121
भजन संहिता 122
भजन संहिता 123
भजन संहिता 124
भजन संहिता 125
भजन संहिता 126
भजन संहिता 127
भजन संहिता 128
भजन संहिता 129
भजन संहिता 130
भजन संहिता 131
भजन संहिता 132
भजन संहिता 133
भजन संहिता 134
भजन संहिता 135
भजन संहिता 136
भजन संहिता 137
भजन संहिता 138
भजन संहिता 139
भजन संहिता 140
भजन संहिता 141
भजन संहिता 142
भजन संहिता 143
भजन संहिता 144
भजन संहिता 145
भजन संहिता 146
भजन संहिता 147
भजन संहिता 148
भजन संहिता 149
भजन संहिता 150
17 thoughts on “भजन संहिता 78”