योना 1-4
योना 1-4
योना
लेखक
योना 1:1 स्पष्ट रूप से इस पुस्तक के लेखक का नाम दर्शाता है। योना नासरत के निकट गथेपेर नगर का निवासी था। यह क्षेत्र उत्तरकाल में गलील कहलाया (2 राजा. 14:25)। योना उन भविष्यद्वक्ताओं में से था जो उत्तरी राज्य, इस्राएल से थे। योना की पुस्तक में परमेश्वर के धीरज और दयापूर्ण प्रेम को उजागर किया गया है और यह भी कि परमेश्वर आज्ञा न माननेवालों को एक और अवसर देने के लिए तैयार रहता है।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग 793-450 ई. पू.
यह कहानी इस्राएल से आरम्भ होकर भूमध्य सागर के बन्दरगाह याफा होती हुई नीनवे में अन्त होती है। नीनवे अश्शूरों की राजधानी थी जो हिद्देकेल नदी के तट पर बसा था।
प्रापक
इस्राएल की प्रजा तथा भावी बाइबल पाठक
उद्देश्य
इस पुस्तक के मुख्य विषय हैं अवज्ञा एवं आत्मिक जागृति। महा मच्छ के पेट में योना का अनुभव उसे एक अद्वैत मुक्ति का असामान्य अवसर प्रदान करता है परन्तु जब वह पश्चाताप करता है। उसकी आरम्भिक अवज्ञा उसकी व्यक्तिगत जागृति का ही नहीं नीनवे वासियों की भी जागृति का अवसर प्रदान करती है। परमेश्वर का यह सन्देश सम्पूर्ण संसार के लिए है, न कि हमारे प्रिय जनों के लिए या हम जैसों के लिए है। परमेश्वर सच्चा पश्चाताप खोजता है। वह हमारे मन और सच्ची भावनाओं को देखता है, न कि मनुष्यों को दिखाने के लिए भले कामों को।
मूल विषय
सभी लोगों के लिए परमेश्वर का अनुग्रह
रूपरेखा
1. योना की अवज्ञा — 1:1-14
3. योना का पश्चाताप — 1:17-2:10
4. नीनवे में योना का प्रचार — 3:1-10
5. परमेश्वर की दया को देख योना कुपित होता है — 4:1-11