यशायाह 65 1 जो मुझ को पूछते भी न थे वे मेरे खोजी हैं; जो मुझे ढूंढ़ते भी न थे उन्होंने मुझे पा लिया, और जो जाति मेरी नहीं कहलाई थी, उस से भी मैं कहता हूं, देख, मैं उपस्थित हूं। 2 मैं एक हठीली जाति के लोगों की ओर दिन भर हाथ फैलाए रहा, … Read more
यशायाह 64 1 भला हो कि तू आकाश को फाड़कर उतर आए और पहाड़ तेरे साम्हने कांप उठे। 2 जैसे आग झाड़-झंखाड़ को जला देती वा जल को उबालती है, उसी रीति से तू अपने शत्रुओं पर अपना नाम ऐसा प्रगट कर कि जाति जाति के लोग तेरे प्रताप से कांप उठें! 3 जब तू … Read more