श्रेष्ठगीत 3
बेचैनी वाली रात श्रेष्ठगीत 3 1 रात के समय मैं अपने पलंग पर अपने प्राणप्रिय को ढूँढ़ती रही; मैं उसे ढूँढ़ती तो रही, परन्तु उसे न पाया; “मैं ने कहा, मैं अब उठकर नगर में, (यशा. 3:1) 2 और सड़कों और चौकों में घूमकर अपने प्राणप्रिय को ढूँढूँगी।” मैं उसे ढूँढ़ती तो रही, परन्तु उसे न पाया। … Read more