विलापगीत 3
भविष्यद्वक्ता की व्यथा और उसकी आशा 3 1 उसके रोष की छड़ी से दुःख भोगनेवाला पुरुष मैं ही हूँ; 2 वह मुझे ले जाकर उजियाले में नहीं, अंधियारे ही में चलाता है; 3 उसका हाथ दिन भर मेरे ही विरुद्ध उठता रहता है। 4 उसने मेरा माँस और चमड़ा गला दिया है, और मेरी हड्डियों को तोड़ दिया है; … Read more